Friday, 2 February 2018
कबीर/नानक वाणी Vs RSSB(राधा स्वामी)
कबीर/नानक वाणी Vs RSSB(राधा स्वामी)
1. कबीर/नानक जी जैसे पूर्ण संतो ने सतलोक को सचखंड, निजधाम, मुक्तिधाम कहा है
Vs
RSSB वाले सचखंड को सतनाम,सतपुरुष कहते है और राधा स्वामी लोक से नीचे मानते है, ऐसा क्यों????
2.कबीर/नानक जी जैसे पूर्ण संतो ने कंही भी अपनी वाणियों में ये जिक्र नही किया की ऊपर राधा स्वामी कोई लोक भी है,
Vs
RSSB वाले इसे आठवी मंजिल भी बताते है, इसका कोई प्रमाण है कंही????
3. कबीर परमात्मा जी ने कहा की 12वाँ द्वार पार करके सतलोक/सचखंड जाया जाता है, उसके बाद ही जन्म मरन से मुक्त हुआ जा सकता है,
"द्वादश मध्य महल मठ बोरै बहुर ना देह धरै रे"
Vs
RSSB में बताया जाता है की 9 द्वारो को पार करके 10वे में जाओ, 12वें द्वार का जिक्र क्यों नही,ऐसा क्यों????
4. कबीर/नानक जी जैसे पूर्ण संतो ने कभी नही कहा की ढाई घंटे बैठ कर हठयोग करो,
"आँख न मूदे, कान ना रुँधे, ना अनहद उरझावे, प्राण पुंज क्रियाओ से न्यारा, सहज समाधि बतावै"
Vs
RSSB वाले पूरा जोर देते है ढाई घंटे बैठना पड़ेगा,आँख भी मुदनी है,कान भी रुधने है,अनहद भी सुननी है, ऐसा क्यों?????
5. सतगुरु के लक्षण कहु "मधुरे बेन विनोद, चार वेद षट शास्त्र कहे अठारा बोध"
Vs
RSSB में इन पवित्र सद्ग्रंथो का ज्ञान तो छोड़ो, इनकी जिल्द तक नही दिखाई जाती वंहा पर, इसका सबूत ये खुद है किसी से पूछ लो गीता क्या कहती है, सबका एको जवाब सानु की लेना गीता, वेदा तौ, ऐसा क्यों????
6. कबीर/नानक जी जैसे पूर्ण संतो ने सतनाम/सच्चा मन्त्र को गुरु के पास जाकर लेने को कहा है, खाली सच्चा मन्त्र-सच्चा मन्त्र जपने का कोई निर्देश नही दिया,
"कह कबीर अखर दोउ भाख, होयेगा खसम तो लेगा राख"
Vs
RSSB वाले सच्चे मन्त्र को चौथा राम,सतपुरुष,सचखंड,क़ौम,मजहब पता नही क्या क्या बताते है और last में सच्चा मन्त्र,सच्चा मन्त्र जपने को भी दे दिया जाता है, ऐसा क्यों?????
[02/02, 5:42 PM] Vedant: राधा स्वामी वाले 5 नाम देते है बस , वो भि नक्कली नाम।।5 नाम सिधा काल के बताया है फिर भि आख नहि खुलता जल्दी।।
वास्तविक नाम भेद
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सन्त अनेक जगत में, सतगुरु सत् कबीर।
और
साचा शब्द कबीर का, प्रकट किया जग माही।जैसा को तैसा कहै, वो तो निंदा नाही।।
उस कबीर साहेबजी की वाणी में असली पाँच नामों का जिक्र है। कबीर साहेबजी का एक शब्द है -
"कर नैनों दीदार महल में प्यारा है"
जो 32 कली का है जिसे नीचे पोस्ट किया जा रहा है। इस शब्द में उन पाँच नामों का न्यारा विवरण है।
ये पाँच नाम प्राइमरी पाठ है।इनके जाप से साधक भगति के योग्य बनता है।जिसका प्रमाण परमात्मा प्राप्त संत गरीबदासजी महाराज जी ने इस तरह किया है -
"पाँच नाम गुझ गायत्री, आत्मतत्व जगाओ।ओम्, सोहम्, किलियं, हरियम्, श्रीयम्, ध्यायो।।
विशेष:
इसमें ज्योति निरंजन, ररंकार, ओंकार व् सतनाम नहीं है जिसे राधास्वामी पंथ में प्रदान किया जाता है।उनके जगह पर ओम्, किलियं, हरियम् व् श्रीयम् है।
किन्तु पूर्ण मुक्ति के लिए पूर्ण कोर्स करना होता है जो सतगुरु के पास होता है।
"पाँच नाम" से आगे का पाठ है "दो अक्षर का नाम" और उसके बाद का पाठ है "एक अक्षर का नाम" जिसे सारनाम या सारशब्द भी कहा जाता है। दो और एक मिलकर तीन शब्द बनते है, जिसका जिक्र पवित्र गीता अ.17.23 में इस तरह हुआ है -
ओम् तत् सत् इति निर्देशः ब्रम्हणः त्रिविधः स्मृतः। (गीता अ.17.23)
सारी बाते संत शिरोमणि कबीर साहेबजी, परम संत नानकदेवजी एवं पवित्र ग्रन्थ गीताजी से भी प्रमाणित है।
परमात्मा प्राप्त संत नामदेवजी ने तीन नामों का भेद इस तरह दिया है -
नामा छिपा "ओम" तारी, पीछे "सोहम्" भेद विचारी।"सार शब्द" पाया जद लोई आवागवन बहुरि न होई।।
दो अक्षर के नाम को भी आदरणीय गरीबदास जी साहेब ने स्पष्ट किया है -
राम नाम जपकर थिर होई ओम् - तत् (सांकेतिक) मन्त्र दोई।
फिर लिखा है -
ओम् - तत् (सांकेतिक) सार संदेशा, मानों सतगुरु की उपदेशा।
इसी को कबीर साहेबजी ने फिर स्पष्ट किया हा -
कह कबीर, सुनो धर्मदाशा, ओम् - तत् शब्द प्रकाशा।।
नानकदेवजी ने दो अक्षर के मन्त्र को प्राणसंगली में खोला है-
नामों में ना ओम् - तत् है, किलविष कटै ताहि।
कबीर, सतगुरु सो सतनाम दृढ़ावे, और गुरु कोई काम न आवे।
ओम् + तत् (सांकेतिक) मिलकर सतनाम बनता है। जो दो अक्षर का होता है।सतनाम में ओम् के साथ एक अक्षर का एक और मन्त्र होता है जिसका भेद आदरणीय नानकदेवजी ने
"एक ओंकार" सतनाम
कहकर दिया है। जिसका सीधा सा अर्थ बनता है ओम् के साथ (एक) एक अक्षर का एक अन्य मन्त्र जुड़कर सतनाम बनता है जिसे पवित्र सिख समाज भी आजतक नहीं समझकर सतनाम सतनाम जपने में लगे है।
पाँच नाम के रेफरेंस कबीर साहेब जी की वाणी में देखिये
इस शब्द में-
🙏 -: : शब्द : :-
कर नैनों दीदार महलमें प्यारा है।।टेक।।
काम क्रोध मद लोभ बिसारो, शील सँतोष क्षमा सत धारो।
मद मांस मिथ्या तजि डारो, हो ज्ञान घोडै असवार, भरम से न्यारा है।1।
धोती नेती बस्ती पाओ, आसन पदम जुगतसे लाओ।
कुम्भक कर रेचक करवाओ, पहिले मूल सुधार कारज हो सारा है।2।
मूल कँवल दल चतूर बखानो, किलियम जाप लाल रंग मानो।
देव गनेश तहँ रोपा थानो, रिद्धि सिद्धि चँवर ढुलारा है।3।
स्वाद चक्र षटदल विस्तारो, ब्रह्म सावित्री रूप निहारो।
उलटि नागिनी का सिर मारो, तहाँ शब्द ओंकारा है।।4।।
नाभी अष्ट कमल दल साजा, सेत सिंहासन बिष्णु बिराजा।
हरियम् जाप तासु मुख गाजा, लछमी शिव आधारा है।।5।।
द्वादश कमल हृदयेके माहीं, जंग गौर शिव ध्यान लगाई।
सोहं शब्द तहाँ धुन छाई, गन करै जैजैकारा है।।6।।
षोड्श कमल कंठ के माहीं, तेही मध बसे अविद्या बाई।
हरि हर ब्रह्म चँवर ढुराई, जहँ श्रीयम् नाम उचारा है।।7।।
तापर कंज कमल है भाई, बग भौंरा दुइ रूप लखाई।
निज मन करत वहाँ ठकुराई, सो नैनन पिछवारा है।।8।।
कमलन भेद किया निर्वारा, यह सब रचना पिंड मँझारा।
सतसँग कर सतगुरु शिर धारा, वह सतनाम उचारा है।।9।।
आँख कान मुख बन्द कराओ, अनहद झिंगा शब्द सुनाओ।
दोनों तिल इक तार मिलाओ, तब देखो गुलजारा है।।10।।
चंद सूर एक घर लाओ, सुषमन सेती ध्यान लगाओ।
तिरबेनीके संधि समाओ, भौर उतर चल पारा है।।11।।
घंटा शंख सुनो धुन दोई, सहस्र कमल दल जगमग होई।
ता मध करता निरखो सोई, बंकनाल धस पारा है।।12।।
डाकिनी शाकनी बहु किलकारे, जम किंकर धर्म दूत हकारे।
सत्तनाम सुन भागे सारें, जब सतगुरु नाम उचारा है।।13।।
गगन मँडल बिच उर्धमुख कुइया, गुरुमुख साधू भर भर पीया।
निगुरो प्यास मरे बिन कीया, जाके हिये अँधियारा है।।14।।
त्रिकुटी महलमें विद्या सारा, धनहर गरजे बजे नगारा।
लाल बरन सूरज उजियारा, चतूर दलकमल मंझार शब्द ओंकारा है।15।
साध सोई जिन यह गढ लीनहा, नौ दरवाजे परगट चीन्हा।
दसवाँ खोल जाय जिन दीन्हा, जहाँ कुलुफ रहा मारा है।।16।।
आगे सेत सुन्न है भाई, मानसरोवर प'धरती पर स्वर्ग' पुस्तक के पृष्ठ नं 190 पर पढे़ -- बीबी रक्खी जी जो समाधिस्थ अवस्था मे नरक पहुँच गई थी, स्वयं सावन सिंह जी महाराज जी को बता रही है कि नरक मे ये पाँच नाम का सिमरन काम नही कर रहा |
पुण्यात्माओ विचार करें --
कबीर साहेब कहते है --
कच्ची सरसो पेल कर , खल होया न तेल ||
कबीर साहेब ने मोक्ष मार्ग को अपने एक दोहे मे समेट दिया है|---
जप मरे अजपा मरे, अनहद भी मर जाय।
सुरत समानी शब्द में, ताहि काल नहीं खाय ।।
कबीर साहेब कहते है कि ब्रह्मरन्ध्र पर नीचे के 5 कमलो के 5 जप मंत्र निष्प्रभावी हो जाते है, और अजपा जाप(सतनाम, जो दो मंत्र का है,जिसे साँसो की माला पे जपा जाता है, इसलिये इसे अजपा जाप कहते है ) ब्रह्म एवम् परब्रह्म के लोक पार करते ही निष्प्रभावी हो जाते है| इसके बाद महासुन्न में अनहद धुन भी बंद हो जाती है, इस महासुन्न को सारनाम(सारशब्द) से पारकरते है| यहाँ से आगे मकरतार की डोरी प्रारंभ होती है जिसे सारशब्द से पार करके सतलोक मे प्रवेश करते है| यहाँ काल से पूर्णतया मुक्ति मिल जाती है|
नानक जी ने भी लिखा है ---
१ऊँ सतनाम करतापुरख ---
पूर्ण परमात्मा का नाम ऊँ तत् सत् है| तत् और सत् गुप्त है| इसे
ही गुरबाणी मे नानक जी ने तत् को सतनाम से और सत् को करतापुरख से अंकित किया है| वास्तविक मंत्र अन्य है | ये code word है |
जैसे नानक जी अपनी वाणियो मे "१ऊँ सतनाम करतापुरख निरभय निरवैर अकालमूर्त अजुनी सैभं" लिखा है , यहां १ लगाकर उसी एक परमात्मा के गुणो का वर्णन किया गया है कि
१ पूर्ण परमात्मा( जिसका सांकेतिक नाम "ऊँ तत् सत् " या "ऊँ सतनाम करतापुरख" या "अन् सिन कॉफ" है) ही निरभय , निरवैर,अकालमुर्त, अजुनी, सैभं(स्वयंभू )है|
जैसे नानक जी ने लिखा है -
सोई गुरू पूरा कहावे, दो अक्षर का भेद बताये|
एक छुड़ावे एक लखावे तो प्राणी निज घर को पावे||
जे तू पढया पंडित बिन अक्षर दुय नावां|
प्रणवत नानक एक लंघाय जेकर सच समावां||
और कबीर साहेब ने लिखा है-
कह कबीर दो अक्षर भाख, होगा खसम तो लेगा राख||
ये वाणियां 'ऊँ+ तत् ' के लिये है जो अजपा जाप की ओर इशारा है|
फिर लिखा है-
वेद कतेब सिमृत सभ सासत इन पढया मुक्त न होई|
एक अक्षर जो गुरमुख जापे तिस की निर्मल सोई||
ये वाणी सत् या करतापुरख के लिये लिखी है | जो सारनाम ( सारशब्द) की ओर संकेत है| वास्तविक मंत्र अन्य है|
इस प्रकार वेदो और कबीर साहेब ने अपनी वाणियो मे लिखा है कि पूर्ण गुरू तीन बार मे सतलोक जाने के मंत्र का भेद बताता है , शिष्य के नाम कमाई के हिसाब से और गुणो के आधार पर आगे के वास्तविक मंत्रो को उजागर करता है|
प्रथम बार मे शरीर के पांच कमलो के मंत्र दिये जाते है|
रामकली महला ३ अनंदु --
वाजे पंच सबद तितु घरि सभागे|| घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि
धारीआ|| पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ|| धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे||
कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे|| ५||
ये शब्द भी बताता है कि प्रथम मंत्र के पांच नाम , शरीर मे स्थित पांच दूतो ( गणेश, ब्रह्मा , विष्णु, शिव, दुर्गा )के है |
इसके बाद अजपा जाप और अंत मे साधक की कमाई को देखकर सारनाम (सारशब्द ) का भेद खोला जाता है |
https://m.youtube.com/watch?v=68XdMqQCTeM