Tuesday, 7 November 2017
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।
True GOD
THURSDAY, JULY 16, 2015
Sat Sahib
राधासोआमी वाले कहते हैं परमात्मा निराकार है , लेकिन वह यह नहीं जानते कि शास्त्रो में परमात्मा कबीर साहिब लिखा है।
first watch this video तत्व ज्ञान जानने के लिए.
सृष्टि रचना
Proof --kabir is god--
"Proof in "Gurbani" kabir is god"
====*Guru Nanak dev ji bani*====
*Page no. 721, Raag Tilang, Mehla 1
“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।
Ek suaan dui suaani naal, bhalke bhaunkahi sada biaal
Kud chhura mutha murdaar, dhaanak roop raha kartaar ।1।
Mae pati ki pandi na karni ki kaar çuh bigad roop raha bikraal
Tera ek naam taare sansaar, main eho aas eho aadhaar
Mukh ninda aakha din raat, par ghar johi neech manaati
Kaam krodh tan vasah chandaal, dhaanak roop raha kartaar ।2।
Faahi surat malooki ves, uh thagvaada thaggi des
Kharaa siaana bahuta bhaar, dhaanak roop raha kartaar ।3।
Main keeta na jaata haraamkhor, uh kia muh desa dusht chor
Nanak neech kah bichaar, dhaanak roop raha kartaar ।4। (page 24)"
http://www.jagatgururampalji.org/shrigurugranthsahib.php
Proof in====*kabir sahib bani*=====
**अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।**
**जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी।
असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।टेक।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिन नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।
देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।**
*Proof in== **Gribdasji maharaj vani**====
अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार। सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजनहार।।
गैबी ख्याल विशाल सतगुरु, अचल दिगम्बर थीर है। भक्ति हेत काया धर आये, अविगत सत् कबीर हैं।।
हरदम खोज हनोज हाजर, त्रिवैणी के तीर हैं। दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड़ कबीर हैं।।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया। जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर। दास गरीब सतपुरुष भजो, अविगत कला कबीर।।
गरीब जिस कूं कहते कबीर जुलाहा। सब गति पूर्ण अगम अगाहा।।
**हम ही अलख अल्लाह है, कुतुब गोस गुरु पीर।
गरीबदास मालिक धनी, हमरो नाम कबीर।।
मैं कबीर सर्वजा हूँ, सकल हमारी जात।
गरीबदास पिंडदान में, युगन- युगन सँग साथ।।
शाह सिकंदर देखकर, बहुत भए मिसकीन।
गरीबदास गति शेर की, धरकीं दोनों दीन।।**
proof in*======= Dadu sahib vani ========
जिन मोकुं निज नाम दिया, सोइ सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजनहार।।
दादू नाम कबीर की, जै कोई लेवे ओट। उनको कबहू लागे नहीं, काल बज्र की चोट।।
दादू नाम कबीर का, सुनकर कांपे काल। नाम भरोसे जो नर चले, होवे न बंका बाल।।
जो जो शरण कबीर के, तरगए अनन्त अपार। दादू गुण कीता कहे, कहत न आवै पार।।
कबीर कर्ता आप है, दूजा नाहिं कोय। दादू पूरन जगत को, भक्ति दृढ़ावत सोय।।
ठेका पूरन होय जब, सब कोई तजै शरीर। दादू काल गँजे नहीं, जपै जो नाम कबीर।।
आदमी की आयु घटै, तब यम घेरे आय। सुमिरन किया कबीर का, दादू लिया बचाय।।
मेटि दिया अपराध सब, आय मिले छनमाँह। दादू संग ले चले, कबीर चरण की छांह।।
सेवक देव निज चरण का, दादू अपना जान। भृंगी सत्य कबीर ने, कीन्हा आप समान।।
दादू अन्तरगत सदा, छिन-छिन सुमिरन ध्यान। वारु नाम कबीर पर, पल-पल मेरा प्रान।।
सुन-2 साखी कबीर की, काल नवावै भाथ। धन्य-धन्य हो तिन लोक में, दादू जोड़े हाथ।।
केहरि नाम कबीर का, विषम काल गज राज। दादू भजन प्रतापते, भागे सुनत आवाज।।
पल एक नाम कबीर का, दादू मनचित लाय। हस्ती के अश्वार को, श्वान काल नहीं खाय।।
सुमरत नाम कबीर का, कटे काल की पीर। दादू दिन दिन ऊँचे, परमानन्द सुख सीर।।
दादू नाम कबीर की, जो कोई लेवे ओट। तिनको कबहुं ना लगई, काल बज्र की चोट।।
और संत सब कूप हैं, केते झरिता नीर। दादू अगम अपार है, दरिया सत्य कबीर।।
अबही तेरी सब मिटै, जन्म मरन की पीर। स्वांस उस्वांस सुमिरले, दादू नाम कबीर।।
कोई सर्गुन में रीझ रहा, कोई निर्गुण ठहराय। दादू गति कबीर की, मोते कही न जाय।।
जिन मोकुं निज नाम दिया, सोइ सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजनहार।।
- See more at: http://radhasoami.supremeknowledge.org/dadu_vani.php#sthash.ToL2PWMt.dpuf
*======== Dharmdas Ji vani=========
Aaj mohe darshan diyo Ji Kabir ll tek ll
Satyalok se chal kar aaye, kaatan jam ki janjeer ll 1 ll
Thaare darshan se mhaare paap katat hain, nirmal hovae Ji shareer
ll 2 ll
Amrit bhojan mhaare Satguru jeemaen, shabd doodh ki kheer ll 3 ll
Hindu ke tum Dev kahaaye, Musalmaan ke peer ll 4 ll
Dono deen ka jhagda chhid gayaa, tohe na paaye shareer ll 5 ll
Dharmdas ki arj Gosaain, beda lagaaio parle teer ll 6 ll
- See more at: http://www.jagatgururampalji.org/mol.php#sthash.UPIj9Iqe.dpuf
*===========Malook Das==========
Japo re man Satguru naam Kabir ll tek ll Ek samay Guru bansi bajaai kalandri ke teer l Sur-nar muni thak gaye, ruk gaya dariya neer ll Kaanshi taj Guru maghar aaye, dono deen ke peer l Koi gaade koi agni jaraavae, dhoonda na paaya shareer ll Chaar daag se Satguru nyaara, ajro amar shareer l Das Malook salook kahat hai, khojo khasam Kabir ll
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*Proof in*Quran Sharif Adhyay Surat Furqani S. 25, Aayat 52, 58-59*
**Proof in veds**
*Yajurved Adhyay 29 Mantra 25
समिद्धः-अद्य-मनुषः-दुरोणे-देवः-देवान्-यज्-असि- जात-वेदः-आ- च-वह-मित्रामहः-चिकित्वान्-त्वम्-दूतः- कविर्-असि-प्रचेताः।
*Samved in Sankhya 1400 Sankhya 359 Samved Adhyay no. 4 Khand no. 25 Shlok no. 8
पुराम्-भिन्दुः-युवा-कविर्-अमित-औजा- अजायत-इन्द्रः-विश्वस्य- कर्मणः-धर्ता-वज्री- पुरूष्टुतः।
*Mantra Sankhya 1400 Samved Utarchik Adhyay no. 12 Khand no. 3 Shlok no. 5
भद्रा वस्त्रा समन्या वसअनः महान् कविर् निवचनानि शंसन् आवच्यस्व चम्वोः पूयमानःविचक्षणः जाग विः देव वीतौ
*Rigved Mandal 9 Sukt 96 Mantra 17
शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् म जन्ति शुम्भन्ति वहिन मरूतः गणेन। कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्राम् अत्येति रेभन्।।
*Atharvaved Kaand no. 4 Anuvak no. 1 Mantra 7
यः-अथर्वाणम्-पित्तरम्-देवबन्धुम्-ब हस्पतिम्-नमसा-अव-च-गच्छात्-त्वम्-विश्वेषाम्-जनिता-यथा-सः-कविर्देवः-न-दभायत्-स्वधावान
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Radasoami 5 names up to kaal
वह ५ नाम अलग हैं .
====read this ===
Vani kabir sahib
संतो शब्दई शब्द बखाना।।टेक।।
शब्द फांस फँसा सब कोई शब्द नहीं पहचाना।।
प्रथमहिं ब्रह्म स्वं इच्छा ते पाँचै शब्द उचारा। सोहं, निरंजन, रंरकार, शक्ति और ओंकारा।।
पाँचै तत्व प्रकृति तीनों गुण उपजाया। लोक द्वीप चारों खान चैरासी लख बनाया।।
शब्दइ काल कलंदर कहिये शब्दइ भर्म भुलाया।। पाँच शब्द की आशा में सर्वस मूल गंवाया।।
शब्दइ ब्रह्म प्रकाश मेंट के बैठे मूंदे द्वारा। शब्दइ निरगुण शब्दइ सरगुण शब्दइ वेद पुकारा।।
शुद्ध ब्रह्म काया के भीतर बैठ करे स्थाना। ज्ञानी योगी पंडित औ सिद्ध शब्द में उरझाना।।
पाँचइ शब्द पाँच हैं मुद्रा काया बीच ठिकाना। जो जिहसंक आराधन करता सो तिहि करत बखाना।।
शब्द निरंजन चांचरी मुद्रा है नैनन के माँही। ताको जाने गोरख योगी महा तेज तप माँही।।
शब्द ओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है स्थाना। व्यास देव ताहि पहिचाना चांद सूर्य तिहि जाना।।
सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा भंवर गुफा स्थाना। शुकदेव मुनी ताहि पहिचाना सुन अनहद को काना।।
शब्द रंरकार खेचरी मुद्रा दसवें द्वार ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु महेश आदि लो रंरकार पहिचाना।।
शक्ति शब्द ध्यान उनमुनी मुद्रा बसे आकाश सनेही। झिलमिल झिलमिल जोत दिखावे जाने जनक विदेही।।
पाँच शब्द पाँच हैं मुद्रा सो निश्चय कर जाना। आगे पुरुष पुरान निःअक्षर तिनकी खबर न जाना।।
नौ नाथ चैरासी सिद्धि लो पाँच शब्द में अटके। मुद्रा साध रहे घट भीतर फिर ओंधे मख्ुा लटके।।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा लोक द्वीप यमजाला। कहैं कबीर अक्षर के आगे निःअक्षर का उजियाला।।
part:1
part:2
part:3
part:4
**कबीर, कोटि नाम संसार में , इनसे मुक्ति न हो।
सार नाम मुक्ति का दाता, वाको जाने न कोए।।**
**घट रामायण के रचयिता आदरणीय तुलसीदास साहेब जी हाथ रस वाले स्वयं कहते हैं कि:- (घट रामायण प्रथम भाग पृष्ठ नं. 27)।
पाँचों नाम काल के जानौ तब दानी मन संका आनौ।
सुरति निरत लै लोक सिधाऊँ, आदिनाम ले काल गिराऊँ।
सतनाम ले जीव उबारी, अस चल जाऊँ पुरुष दरबारी।।**
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Radasoami shivdyal has no guru.
कबीर साहिब कहते हैं
कबीर – गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो वेद पुराण ॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਕੋਈ ॥ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਨਾਮੁ ਪਾਇਆ ਨ ਜਾਇ ॥ 946 line 8
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਪਾਇ ॥ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮਹਾ ਗਰਬਿ ਗੁਬਾਰਿ ॥ (SGGS Page 946, Line 9)
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਮੁਆ ਜਨਮੁ ਹਾਰਿ ॥੭੦॥(SGGS Page 946, Line 10)
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Radasoami shivdyal hokaah smooker.
***Kabir sahib bani on hookah***
*अमल आहारी आत्मा, कदे ना उतरे पार ।*
*हरिजन को सोहै नहीं, हुक्का हाथ के माहि ।
कहें कबीर रामजन, हुक्का पीवें नाहिं ॥*
*भांग तमाखू छूतरा, जन कबीर से खाहिं ।
जोग मन जप तप किये, सबे रसातल जाहि ॥*
*सुरापान मद्य मांसाहारी, गमन करै भोगैं पर नारी।
सतर जन्म कटत हैं शीशं, साक्षी साहिब है जगदीशं।।
पर द्वारा स्त्री का खोलै, सतर जन्म अंधा होवै डोलै।
मदिरा पीवै कड़वा पानी, सत्तर जन्म श्वान के जानी।।*
**Gurbani about hooka**
*ਪਾਨ ਸਪਾਰੀ ਖਾਤੀਆ ਮਖਿ ਬੀੜੀਆ ਲਾਈਆ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਦੇ ਨ ਚੇਤਿਓ ਜਮਿ ਪਕੜਿ ਚਲਾਈਆ ॥੧੩॥*
(SGGS jeeo-726)
****Satguru Garib Das ji's Bani****
*गरीब, हुक्का हरदम पिवते, लाल मिलावैं धूर। इसमें संशय है नहीं, जन्म पिछले सूर।।1।।
गरीब, सो नारी जारी करै, सुरा पान सौ बार। एक चिलम हुक्का भरै, डुबै काली धार।।2।।
गरीब, सूर गऊ कुं खात है, भक्ति बिहुनें राड। भांग तम्बाखू खा गए, सो चाबत हैं हाड।।3।।
गरीब, भांग तम्बाखू पीव हीं, सुरा पान सैं हेत। गौस्त मट्टी खाय कर, जंगली बनें प्रेत।।4।।
गरीब, पान तम्बाखू चाब हीं, नास नाक में देत। सो तो इरानै गए, ज्यूं भड़भूजे का रेत।।5।।
गरीब, भांग तम्बाखु पीव हीं, गोस्त गला कबाब। मोर मृग कूं भखत हैं, देंगे कहाँ जवाब। ।।6।।*
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Journey to Satlok / Sachkhand - Satguru Rampal Ji Maharaj
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"Radasoami says we are not believe in ved."
पर वेदः सत् है पर इनमे ज्ञान पूरा नहीं है।
kabir sahib says.
वेद कतेब झूठे ना भाई, झूठे हैं सो समझे नांही।
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पूरे गुरु की पहचान
http://www.jagatgururampalji.org/h_true_saint.php
सतनाम का संकेत
in guru Nanak dev di bani
सोए गुरु पूरा कहावै, दोय अखर का भेद बतावै।
एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणी निज घर जावै।।
जै तु पढ़िया पंडित , बिना दउ अखर दउ नामा।
परणवत नानक एक लंघाए, जे कर सच समावा। [1171]
सतनाम का संकेत kabir sahib bani
sat sahib at 5:23 AM
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