Tuesday, 7 November 2017

कहैं कबीर अक्षर के आगे ? निःअक्षर का उजियाला ।

▼ 29 जुलाई 2016 सिद्धि मुद्रायें और असिद्ध परमात्मा अवधू गगन से खोज न्यारा ?  कबीर कहते हैं - परमात्मा पाँचवें तत्व या पाँचों तत्व से भी परे हैं  अर्थात शरीर से बाहर है । ये सिर्फ़ समाधि द्वारा स्थिर हुयी विदेह अवस्था में संभव है अथवा निजत्व में पूर्ण और निश्चयात्मक असंशय भाव से थिर होकर संभव है । संतों शब्दई शब्द बखाना । (सभी शब्द, नाम, धुनों आदि का वर्णन परमात्मा की प्राप्ति के लिये कर रहे हैं) शब्द फांस फँसा सब कोई, शब्द नहीं पहचाना ? (और इन्हीं नकली शब्दजाल में फ़ंस कर रह गये । असली शब्द या ‘वस्तु’ की तरफ़ किसी का ध्यान नही है) प्रथमहिं ब्रह्म स्वं इच्छा ते, पाँचै शब्द उचारा ।  (आदि सृष्टि के समय ब्रह्म ने इच्छा करते हुये 5 शब्दों को उत्पन्न किया - सोहं निरंजन रंरकार शक्ति और ॐकार) सोहं निरंजन रंरकार, शक्ति और ॐकारा ।  पाँचों तत्व प्रकृति, तीनों गुण उपजाया ।  (फ़िर 5 तत्व और हरेक तत्व की 5-5 = 25 प्रकृति और 3 गुणों (सत, रज, तम) को उत्पन्न किया) लोक द्वीप चारों खान,  चौरासी लख बनाया ।  (फ़िर लोक, दीप, चार खाने (अंडज, जरायुज, स्वेदज, वारिज) और 84 लाख जीव जन्तुओं को बनाया । शब्दइ काल कलंदर कहिये, शब्दइ भर्म भुलाया ।  (शब्द को ही काल, खिलाङी कहिये और शब्द से ही समस्त भ्रम उत्पन्न हुआ) पाँच शब्द की आशा में, सर्वस मूल गंवाया ?  (इन पाँच शब्दों के चक्कर में फ़ंसकर जीव अपना मूल परमात्मा को भूल गया) शब्दइ ब्रह्म प्रकाश मेंट के, बैठे मूंदे द्वारा ।  (यही शब्द ब्रह्म आत्मप्रकाश छुपाकर मुक्ति या परमात्म द्वार को बन्द कर स्थित हो गये) शब्दइ निरगुण शब्दइ सरगुण, शब्दइ वेद पुकारा ।  शुद्ध ब्रह्म काया के भीतर, बैठ करे स्थाना ? ज्ञानी योगी पंडित औ, सिद्ध शब्द में उरझाना ।  पाँचइ शब्द पाँच हैं मुद्रा, काया बीच ठिकाना ?  मनुष्य शरीर के बीच (सभी आँखों से ऊपर) हंस के 5 शब्द कृमशः निरंजन, ॐकार, सोहं, रंरकार, शक्ति और 5 मुद्रायें कृमशः चांचरी, भूचरी, अगोचरी, खेचरी, उनमुनी हैं । जो जिहसक आराधन करता, सो तिहि करत बखाना ।  शब्द निरंजन चांचरी मुद्रा, है नैनन के माँही ?   (चाचरी मुद्रा, दोनों आँखें बन्द कर अन्तर में नाभि से नासिका के अग्रभाग तक द्रण होकर सिद्ध की जाती है) ताको जाने गोरख योगी, महा तेज तप माँही ।  शब्द ॐकार भूचरी मुद्रा, त्रिकुटी है स्थाना ?  (भूचरी मुद्रा, सोहं - हंसो अजपा जप को प्राण (स्वांस) के मध्य ध्यान में रखकर सिद्ध की जाती है) व्यास देव ताहि पहिचाना, चांद सूर्य तिहि जाना ।  सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा, भंवर गुफा स्थाना ?  (अगोचरी मुद्रा, दोनों कानों को बन्द कर अन्दर की ध्वनि सुनकर सिद्ध की जाती है) शुकदेव मुनी ताहि पहिचाना, सुन अनहद को काना ।  शब्द रंरकार खेचरी मुद्रा, दसवें द्वार ठिकाना ?  (खेचरी मुद्रा में जीभ को उलटकर ब्रह्मरन्ध्र (तालु) और काग तक बारबार छुआकर पहुँचाकर सिद्ध की जाती है । यह मुद्रा हनुमान जी को सिद्ध थी । जिससे उन्हें उङने, छोटा बङा शरीर आदि बना लेने की कई सिद्धियां प्राप्त थीं) ब्रह्मा विष्णु महेश आदि लो, रंरकार पहिचाना । शक्ति शब्द ध्यान उनमुनी मुद्रा, बसे आकाश सनेही ?  (उनमनी मुद्रा में दृष्टि को भौंहों के मध्य टिकाकर मुद्रा सिद्ध की जाती है) झिलमिल झिलमिल जोत दिखावे, जाने जनक विदेही ।  पाँच शब्द पाँच हैं मुद्रा, सो निश्चय कर जाना ।  आगे पुरुष पुरान निःअक्षर, तिनकी खबर न जाना ?  नौ नाथ चौरासी सिद्धि लो,  पाँच शब्द में अटके । मुद्रा साध रहे घट भीतर, फिर औंधे मुख लटके ? पाँच शब्द पाँच है मुद्रा, लोक द्वीप यम जाला ।  कहैं कबीर अक्षर के आगे ? निःअक्षर का उजियाला । सभी मुद्रायें 10 हैं । जिनमें 5 हंसों की और 5 विशेष परमहंसों की मुद्राएं हैं । परमात्मा ने जैसे ब्रह्माण्ड की रचना की ठीक उसी आकार में  मनुष्य शरीर की रचना की । इच्छानि सृष्टि - संकल्प द्वारा सृष्टि करना । सासिद्धक सृष्टि - इच्छानुसार शरीर बना लेना । मुद्राएं - योग स्थितियों के साक्षात्कार और प्राप्ति के लिये की गयी क्रिया अवस्था को मुद्रा कहते हैं । यह 10 प्रकार की हैं । निम्न 5 हंसों की मुद्रायें हैं । 1 चाचरी - आँख बन्द कर अन्तर में नाभि से नासिका के अग्रभाग तक द्रण होकर देखना । 2 भूचरी - परमात्मा का नाम (हँसो) अजपा जप को प्राण के मध्य ध्यान में रखकर मनन करना । 3 अगोचरी - कानों को बन्द कर अन्दर की ध्वनि सुनना । 4 खेचरी - जीभ को उलटकर ब्रह्मरन्ध्र तक पहुँचाकर स्थिर करना । 5 उनमनी - द्रष्टि को भौंहों के मध्य टिकाना । ये 5 विशेष और परमहंसों की मुद्राएं हैं उनका साक्षात्कार प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है । 1 साम्भवी - जीवों में संकल्प से प्रवेश कर उनके अन्तःकरण का अनुभव करना 2 सनमुखी - संकल्प से ही सभी कार्य होने लगे । 3 सर्वसाक्षी - स्वयं को, तथा परमात्मा को सबमें देखना । 4 पूर्णबोधिनी - जिसका विचार (या इच्छा) करता है । उसकी पूर्ति तथा बोध पल भर में ही हो जाता है । एक ही जगह स्थित सम्पूर्ण जगत की बात जानना । 5 उनमीलनी - अनहोने कार्य करने की सिद्धि । at 9:40 pm साझा करें ‹ › मुख्यपृष्ठ वेब वर्शन देखें Blogger द्वारा संचालित.

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