Wednesday, 1 November 2017
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वेद, उपनिषद, गीता, भागवत, वेदांत और अन्य ग्रंथों का सार एवम सरल रूप ज्ञान सबको प्रदान करना कविता संख्या के साथ, हमारा परम उद्देश्य हैं।
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भगवान की परिभाषा क्या है, भगवान किसे कहते है?
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भगवान यह गलत लिखावट है। भगवान् यह सही लिखावट है। लेकिन क्योंकि लोग भगवान शब्द गूगल पर सर्च करते है इसलिए हम भगवान शब्द का प्रयोग करेंगे। भगवान किसे कहते है? भगवान् शब्द बनता हैं, भग + वान्। इसमें "भग" धातु है। भग धातु का ६ अर्थ है:- १. पूर्ण ज्ञान, २. पूर्ण बल, ३. पूर्ण धन, ४. पूर्ण यश, ५ . पूर्ण सौंदर्य और ६. पूर्ण त्याग। विष्णुपुराण ६.५.७४ में भी यही बात कहा कि "सम्पूर्ण ऐश्वर्य को भगवान कहते हैं।" इस प्रकार भगवान शब्द से यह तात्पर्य हुआ कि जो छह गुणों से उक्त हो उसे भगवान कहते है, दुसरे शब्दों में कहें तो ये छहों गुण जिसमे नित्य (सदा) रहते हो उन्हें भगवान कहते हैं। लेकिन यह मत सोचिए कि भगवान में केवल ६ गुण होते है। छान्दोग्योपनिषद् ८.७.१ 'एष आत्मापहतपाप्मा विजरो विमृत्युर्विशोको विजिघत्सोऽपिपासः सत्यकामः सत्यसङ्कल्पो' यह भगवान के आठ गुण है। भगवान के अनंत गुण होते है। ये गुण तो प्रमुख है इसलिए ये ६ या ८ गुण अंकित है। लेकिन वास्तविकता क्या है भागवत ११.४.२ "जो भगवान के, श्रीकृष्ण के गुणों की संख्या करे, वो बाल बुद्धि वाला है, वो बच्चा है, जो कहता है,…
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क्या हम जो भी करते है वो भगवान कराता है?
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भगवान आत्मा को सदा शक्ति देते है जीवित (चेतन) रहने का। और केनोपनिषद १.५ , १.६, १.८ और भगवत १०.१३.५५ कहा है कि भगवान प्रत्येक इन्द्रिय मन बुद्धि में तत तत कर्म करने की शक्ति देता हैं। बृहदारण्यकोपनिषद् ३.७.२२ "य आत्मनि तिष्ठन्नात्मनोन्तरो" अर्थात भगवान हमारे अंदर बैठे है, और भगवान अंदर बैठ कर कार्य करने की शक्ति देता है। हम क्या करना चाहे हो हम पर निर्भर करता हैं। जैसे पावर हाउस ने हमारे घर में पावर (बिजली) दे दिया। अब आप कमरा गर्म कीजिये, ठंडा कीजिये, या तार पकड़ के मर जाइये। ये सब आप की जिम्मेदारी है पावर हाउस इसका जिम्मेदार नहीं। पावर हाउस ने कृपा करके आपको पावर दे दी। अब आप उसका सदुपयोग करे या दुरूपयोग करे इसका दंड आप भोगें क्योंकि उसके करता आप हैं। अब सोचिये अगर पावर हाउस वाला कहे कि मेरे बिना तुम्हारे जिले का एक बल्ब भी नहीं जल सकता। हाँ! हो सकता है, क्योंकि पावर हाउस ही तो बिजली देता है। उसी प्रकार भगवान भी प्रत्येक इन्द्रिय मन बुद्धि में तत तत कर्म करने की शक्ति देता हैं। तो अगर भगवान कर्म करने की शक्ति नहीं दे तो हम भी कोई भी कर्म नहीं कर सकते। इसी आधार पर कहा जाता ह…
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