Sunday, 29 October 2017
आश्वलायन
मुख्य मेनू खोलें
खोजें
3
संपादित करेंध्यानसूची से हटाएँ।
आश्वलायन
ऋग्वेद की 21 शाखाओं में से आश्वलायन अन्यतम शाखा है जिसका उल्लेख 'चरणव्यूह' में किया गया है। इस शाखा के अनुसार न तो आज ऋक्संहिता ही उपलब्ध है और न कोई ब्राह्मण ही, परंतु कवींद्राचार्य (17वीं शताब्दी) की ग्रंथसूची में उल्लिखित होने से इन ग्रंथों के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण मिलता है।
इस शाखा के समग्र कल्पसूत्र ही आज उपलब्ध हैं- आश्वलायन श्रौतसूत्र, गृह्मसूत्र और धर्मसूत्र। आश्वलायन श्रौतसूत्र में 12 अध्याय हैं जिनमें होता के द्वारा प्रतिपाद्य विषयों की ओर विशेष लक्ष्य कर यागों का अनुष्ठान विहित है। इसमें पुरोऽनुवाक्या, याज्या तथा ततत् शास्त्रों के अनुष्ठान प्रकार, उनके देश, काल और कर्ता का विधान, स्वर-प्रतिगर-न्यूंख-प्रायश्चित्त आदि का विधान विशेष रूप से वर्णित है। नरसिंह के पुत्र गार्ग्य नारायण द्वारा की गई इस श्रौतसूत्र की व्याख्या नितांत प्रख्यात है।
आश्वलायनगृह्यसूत्र में गृह्म कर्म और षोडश संस्कारों का वर्णन किया गया है। ऋग्वेदियों की गृह्यविधि के लिए यही गृह्मसूत्र विशेष लोक्रपिय तथा प्रसिद्ध है। इसकी व्यापकता का कुछ परिचय इसकी विपुल व्याख्या-संपत्ति से भी लगता है। इसके प्रख्यात टीकाग्रंथों में मुख्य ये हैं:
(1) अनाविला (हरदत्त द्वारा रचित; रचनाकाल 1200 ई. के आसपास);
(2) दिवाकर के पुत्र न्ध्रौवगोत्रीय नारायण द्वारा रचित वृत्ति (1100 ई.);
(3) देवस्वामीरचित्र गृह्मभाष्य (11वीं सदी का पूर्वार्ध),
(4) जयंतस्वामीरचित्र विमलोदयमाला (8वीं सदी का अंत)।
आश्वलायनगृह्य अनेक ग्रंथकारों के नाम से प्रसिद्ध हैं। ऐसे ग्रंथकारों में कुमारिल स्वामी (कुमारस्वामी?), रघुनाथ दीक्षित तथा गोपाल मुख्य हैं। इस गृह्यसूत्र के प्रयोग, पद्धति तथा परिशिष्ट के विषय में भी अनेक ग्रंथों का समय समय पर निर्माण किया गया है। कुमारिल की गृह्यकारिका में आश्वलायनगृह्य की नारायणवृति तथा जयंतस्वामी का निर्देश उपलब्ध होता है। 'आश्वलायनस्मृति' के भी अभी तक हस्तलेख ही उपलब्ध हैं। यह 11 अध्यायों में विभक्त और लगभग 2,000 पद्योंवाला ग्रंथ है जिसके उद्धरण हेमाद्रि तथा माधवाचार्य ने अपने ग्रंथों में दिए हैं।
इन्हें भी देखें संपादित करें
वेद
वैदिक साहित्य
वैदिक शाखाएँ
संदर्भ ग्रंथ संपादित करें
बलदेव उपाध्याय : वैदिक साहित्य और संस्कृति (काशी);
पी.वी.काणे : हिस्ट्री ऑव धर्मशास्त्र, प्रथम खंड (पूना)।
संवाद
Last edited 8 months ago by NehalDaveND
RELATED PAGES
आरण्यक
वैदिक साहित्य
श्रौतसूत्र
सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो।
गोपनीयताडेस्कटॉप
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment