Sunday, 29 October 2017

वैदिक शाखाएँ

वैदिक शाखाएँ
मूलवस्तु से निकले हुए विभाग अथवा अंग को शाखा कहते हैं - जैसे वृक्ष की शाखा। वैदिक साहित्य के संदर्भ में वैदिक शाखा शब्द से उन विशेष परंपराओं का बोध होता है जो गुरु-शिष्य-प्रणाली, देशविभाग, उच्चारण की भिन्नता, काल एवं विशेष परिस्थितिजन्य कारणों से चार वेदों के भिन्न-भिन्न पाटों के रूप में विकसित हुई। शाखाओं को कभी कभी 'चरण' भी कहा जाता है। इन शाखाओं का विवरण शौनक के चरणव्यूह और पुराणों में विशद रूप से मिलता है।

वैदिक शाखाओं की संख्याएँ सब जगह एक रूप में दी गई हों, ऐसा नहीं। फिर, विभिन्न स्थलों में वर्णित सभी वैदिक शाखाएँ आजकल उपलब्ध भी नहीं है। पतंजलि ने ऋग्वेद की 21, यजुर्वेद की 100, सामवेद की 100 तथा अथर्ववेद की 9 शाखाएँ बताई है। किंतु चरणव्यूह में उल्लिखित संख्याएँ इनसे भिन्न हैं। चरणव्यूह से ऋग्वेद की पाँच शाखाएँ ज्ञात होती हैं - शाकलायन, वाष्कलायन, आश्वलायन, शाखायन और मांडूकायन। पुराणों से उसकी केवल तीन ही शाखाएँ ज्ञात होती हैं - शाकलायन, वाष्कलायन और मांडूकायन। यजुर्वेद की दो शाखायें ज्ञात होती है - शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद। शुक्ल यजुर्वेद की 85 शाखाओं की चर्चा मिलती है, किंतु आज उनमें से केवल ये चार ही उपलब्ध है तैत्तिरीय, मैत्रायणी, कठ और कपिष्ठकलकठशाखा। कितु कपिष्ठलशाखा कठ की ही एक उपशाखा है। कठशाखा पंजाब में तथा तैत्तिरीय और मैत्रायणी शाखाएँ क्रमश: नर्मदा नदी के निचले प्रदेशों एव दक्षिण भार में प्रचलित हुई। वहाँ उनकी और भी उपशाखाएँ हो गई। सामवेद की शाखासंख्या पुराणों में १००० बताई गई है। पतंजलि ने भी सामवेद को 'सहस्रवर्त्मा' कहा है। भागवत, विष्णु और वायुपुराणों के अनुसार वेदव्यास के शिष्य जैमिनी हुए। उन्हीं के वंश में सुकर्मा हुए, जिनके दो शिष्य थे - एक हिरण्यनाभ कौसल्य, जो कोसल के राजा थे और दूसरे पौष्पंजि। कोसल की स्थिति पूर्वी (वास्तव में उत्तर पूर्वी) भारत में थी और इस कारण हिरण्यनाभ से चलनेवाली 500 शाखाएँ 'प्राच्य' कहलाई। पौष्यंजि से चलनेवाली 500 शाखाएँ 'उदीच्य' कहलाई। अथर्ववेद की नौ शाखाएँ मिलती हैं। उनमें नाम हैं - पिप्पलाद, स्तौद, मौद, शौनक, जाजल, जलद, ब्रह्मवद, देवदर्श तथा चारणवैद्य। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध शाखाएँ हैं पिप्पलाद और शौनक।

अनुक्रम
शाखासमूह संपादित करें

प्राचीन लौहयुगीय वैदिक भारत का मानचित्र, विटजेल, १९८९। वैदिक शाखाओं की स्थिति हरे रंग में दिखाई गयीं हैं।
ऋग्वेद संपादित करें
शौनक के चरणब्यूह में ऋग्वेद की पाँच शाखाओं की तालिका है। ये शाखायें ये हैं- शाकल, बाष्कल, अश्वलायन, संख्यायन और माण्डुक्यायन। वर्तमान समय में इनमें से शाकल और बाष्कल - दो शाखायें प्रचलित हैं।

ऋग्वेद की बाष्कल शाखा में खिलानि हैं, जो शाकल शाखा में नहीं हैं। फिर भी वर्तमान में पुणे में सुरक्षित शाकल शाखा की एक कश्मीरी पाण्डुलिपि में खिलानि पाया गया है।

शाकल शाखा में ऐतरेय ब्राह्मण एवं बाष्कल शाखा में कौषीतकी ब्राह्मण बचा हुआ है।

अश्वलायन शखा का सूत्र साहित्य मिला है जिसमें श्रौत सूत्र, गृह्य सूत्र तथा इनकी गर्ग्य नारायण द्वारा रचित वृत्ति है। गर्ग्य नारायण की वृत्ति ११वीं शताब्दी में देवस्वामी द्वारा रचित एक विषद भाष्य पर आधारित है। [1]

यजुर्वेद संपादित करें
शुक्ल यजुर्वेद: वाजसनेयी संहिता मध्यण्डिन, वाजसनेयी संहिता कान्ब: शतपथ ब्राह्मण।
कृष्ण यजुर्वेद: तैत्तिरीय संहिता (तैत्तिरीय ब्राह्मण नामक एक अतिरिक्त ब्राह्मण के साथ), मैत्रेयानी संहिता, चरक-कठ संहिता, कपिष्ठल-कठ संहिता।
शुक्ल यजुर्वेद संपादित करें
शाखा संहिता ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद्‌
मध्यण्डिन (वाजसनेयी संहिता मध्यण्डिन) वर्तमान समय में उत्तरभारत के सभी ब्राह्मण और देशस्थ ब्राह्मणों द्बारा पठित मध्यण्डिन शतपथ (शुक्ल यजुर्वेदीय वाजसनेयी मध्यण्डिन) शतपथ १४.१-८ में रक्षित (स्वरचिह्नों के साथ)। बृहदारण्यक उपनिषद्‌ = शुक्ल यजुर्वेदीय वाजसनेयी मध्यण्डिन १४.३-८, (उच्चारणभङ्गि सह), ईशाबास्य उपनिषद्‌ = वाजसनेयी संहिता मध्यण्डिन ४०
कान्ब (वाजसनेयी संहिता कान्ब) बर्तमान समय में उत्कल ब्राह्मण, कन्नड़ ब्राह्मण, कड़डे ब्राह्मण और कुछ ऐयर ब्राह्मणों द्बारा पठित। कान्ब शतपथ (शुक्ल यजुर्वेदीय वाजसनेयी कान्ब) (मध्यण्डिन से पृथक) शुक्ल यजुर्वेदीय वाजसनेयी कान्ब के १६ अध्याय में रक्षित बृहदारण्यक उपनिषद्‌ = शुक्ल यजुर्वेदीय वाजसनेयी कान्ब (स्वरचिह्नों के साथ), ईशावास्य उपनिषद्‌ = शुक्ल यजुर्वेदीय वाजसनेयी कान्ब ४०
कात्यायन - -
कृष्ण यजुर्वेद संपादित करें
शाखा संहिता ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद्‌
तैत्तिरीय तैत्तिरीय संहिता, समग्र दक्षिण भारत और् कोंकण में प्रचलित तैत्तिरीय ब्राह्मण और बधूला ब्राह्मण (बधूला श्रौत्रशास्त्र के अन्तर्गत) तैत्तिरीय आरण्यक तैत्तिरीय उपनिषद्‌
मैत्रेयानी मैत्रेयानी संहिता, नासिक के कुछ ब्राह्मण पाठ करते हैं व्यवहारतः उपनिषद्‌ के समान मैत्रेयानीय उपनिषद्‌
चरक-कठ कठ आरण्यक (प्रायः सम्पूर्ण ग्रन्थ एकमात्र पाण्डुलिपि के रूप में मिलता है) कठक उपनिषद्‌, कठ-शिक्षा उपनिषद्‌[2]
कपिष्ठल कपिष्ठल-कठ संहिता (खण्डित पाण्डुलिपि, केवल प्रथम भाग स्वरचिह्नों सहित), रघुवीर द्वारा सम्पादित (बिना स्वरचिह्नों के) - -
सामवेद संपादित करें
शाखा संहिता ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद्‌
कौठुम पूरे उत्तर तथा दक्षिण भारत में पठित ८ ब्राह्मण (स्वरचिह्न रहित) एक भी नहीं। संहिता में ही एक आरण्यक है। छान्दोग्य उपनिषद्‌
रणयनीय संहिता की पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध ; गोकर्ण और देशस्थ ब्राह्मणों द्वारा पठित कौठुम शाखा के समान। कुछ-कुछ अन्तर है। एक भी नहीं। संहिता में ही एक आरण्यक है। कौठुम शाखा के समान।
जैमिनीय/तलबकार प्रकाशित ब्राह्मण (स्वरचिह्न रहित) – जैमिनीय ब्राह्मण, आर्षेय ब्राह्मण केन उपनिषद्‌
शात्यायन - -
अथर्ववेद संपादित करें
शाखा संहिता ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद्‌
शौनक अथर्ववेद संहिता, समग्र उत्तर और दक्षिण भारत में सम्पादित तथा पठित। गोपथ ब्राह्मण के असम्पूर्ण अंश (प्रकाशित, स्वरचिह्न रहित) - मुण्डक उपनिषद्‌ (?) प्रकाशित
पैप्पलाद पैप्पलाद अथर्ववेद। उत्कल ब्राह्मणों द्वारा केवल संहिता पाठ। अन्यत्र दो पाण्डुलिपियाँ मिली हैं: कश्मीरी (अधिकांशतः सम्पादित) तथा ओड़िया (आंशिक सम्पादित, स्वरचिह्न रहित) विलुप्त, गोपथ ब्राह्मण के समान - प्रश्न उपनिषद्‌

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